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शौच के समय जनेऊ कान पर लपेटना सनातन परंपरा में जरूरी क्यों ?

शौच के समय जनेऊ कान पर लपेटना सनातन परंपरा में जरूरी क्यों ?


तेजस्वी संगठन ट्रस्ट।

शौच के समय जनेऊ कान पर लपेटना सनातन परंपरा में जरूरी क्यों ?

 

सनातन परंपरा में यज्ञोपवीत को ही जनेऊ कहते हैं। हमारी संस्कृति को मानने वाले मातावलंबी जो जनेऊ धारण करते हैं वह मल मूत्र त्याग करते समय जनेऊ को अपने दाहिने कान पर लपेटते हैं पहली बात तो यह है कि मल मूत्र त्याग में अशुद्धता ,अपवित्रता से बचाने के लिए जनेऊ को कानो पर लपेटने की परंपरा बनाई गई है इससे जनेऊ के कमर से ऊपर आ जाने के कारण अपवित्र होने की संभावना नहीं रहती दूसरे हाथ पांव के अपवित्र होने का संकेत मिल जाता है ताकि व्यक्ति उन्हें साफ कर ले ।

कूर्मपुराण के अनुसार है – 13/34

निधाय दक्षिणे कर्णे ब्रह्मसूत्रमुदङ्मुखः।

अनि कुर्याच्छकृन्मूत्रं रात्रौ चेद् दक्षिणामुखः ॥

अर्थात् दाहिने कान पर जनेऊ चढ़ाकर दिन में उत्तर की ओर मुख करके तथा रात में दक्षिण मुख होकर मलमूत्र का त्याग करना चाहिए ।

 

मनुस्मृति के अनुसार -1/92

ऊर्ध्व नाभेर्मेध्यतरः पुरुषः परिकीर्तितः ।

तस्मान्मेध्यतमं त्वस्य मुखमुक्तं स्वयम्भुवा ॥

वैज्ञानिक प्रमाण यह है कि लंदन के क्वीन एलिजाबेथ का हॉस्पिटल के डॉक्टर s.r.सक्सेना के मतानुसार हिंदुओं द्वारा मलमूत्र के समय कान पर जनेऊ लपेटने का वैज्ञानिक आधार है जनेऊ कान पर लपेटने से आतों की सिकुड़ने फैलने की गति बढ़ती है जिससे मल त्याग जल्दी होजाता है और कब्ज दूर होता है।

इटली के बाटी विश्वविद्यालय के न्यूरो सर्जन प्रोफेसर एनारिब पिटाजेली ने यह बताया कि कान के मूल के चारों तरफ दबाव डालने से हृदय मजबूत होता है इस प्रकार हृदय रोगों से बचाने में भी जनेऊ लाभ पहुंचता है।

उपरोक्त तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि सनातन संस्कृति में जनेऊ धारण करने की परंपरा पूर्णतः वैज्ञानिक है जो हमारे ऋषि परंपरा ने यज्ञोपवीत के माध्यम से हमे सौपा है अतः इस परंपरा को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी हम सभी सनातनी बंधुओं का है

जाग्रत सनातन सेना (अंजनी भारद्वाज, अमित मिश्रा, मुरारी पाठक) 7800085586


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