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सोनभद्र -दिनारी के लोग सोनभद्र की सभ्यता से अपने को अलग कर रहे महसूस!

सोनभद्र -दिनारी के लोग सोनभद्र की सभ्यता से अपने को अलग कर रहे महसूस!


तेजस्वी संगठन ट्रस्ट।

दिनारी के लोग सोनभद्र की सभ्यता से अपने को अलग कर रहे महसूस!

 प्रतिवर्ष बाढ़ में एक व्यक्ति की होती है मौत, प्रशासन बेखबर, नेताओं को पता ही नहीं!

 

सोनभद्र /विजय विनीत तिवारी

 

 

सोनभद्र,जनपद का एक ऐसा गांव जो 21वीं शताब्दी का एक भाग समाप्त होने के पश्चात भी अपने को इस दुनिया से अलग मान रहा है! आदिवासियों का यह संपूर्ण गांव इतना बेबस और लाचार है कि अपने को इंसान कहने पर भी शर्म महसूस कर रहा है! इस गांव में जाने के लिए कोई भी मार्ग व्यवस्थित नहीं है और घाघर नदी पर बना रपटा प्रतिवर्ष बरसात में किसी न किसी की जान लेकर ही दम लेता है! बच्चे स्कूल जाने से वंचित मरीज अस्पताल जाने से दूर ग्राम प्रधान से लेकर मुख्यमंत्री तक इसकी भनक नहीं! ग्रामीणों का कहना है कि सायद आदिवासी होने का दंड हम ग्राम वासियों को मिल रहा है!

जनपद के अति नक्सल प्रभावित नगवॉ विकासखंड के ग्राम पंचायत केवटम का एक राजस्व गांव दिनारी है इस गांव में अधिकांश आबादी आदिवासी जाति के अगरिया की है इसके अलावा गांव में कुछ अन्य आदिवासी जातियां भी निवास करती हैं! सोनभद्र जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति यह गांव दक्षिण तरफ घाघर नदी और उत्तर तरफ पहाड़ की चट्टानों से घिरा हुआ है इस गांव में जाने के लिए कागजों पर तो ग्राम पंचायत रामपुर के पिणराडोहर टोला से एक संपर्क मार्ग बनाया गया है और दूसरा संपर्क मार्ग रामपुर गांव से भी दिनारी के लिए बनाया गया है! लेकिन जब बरसात का मौसम शुरू होता है तो घाघर नदी में सोमा से लेकर रामपुर तक के छोटे-छोटे नालों, झरनों व नदियों का पानी आकर मिलता है तो घाघर नदी अपने उफान पर हो जाती है, ऐसे में दिनारी गांव के संपूर्ण ग्रामीण जिला मुख्यालय से पूरी तरह कट जाते हैं! पिछले 4 वर्षों के दौरान घाघर नदी पर बने रपटे पर पानी की चपेट में आकर भदईअणार के महादेव की मौत हो गई! इस वर्ष चोपन का एक लड़का जो अपने रिश्तेदारी में दिनारी आया था वह भी रपटे पर से बह कर घघर नदी में विलीन हो गया, दिनारी के राजू पिछले वर्ष बह गए, हरिदास अगरिया की पत्नी इस साल इसी घाघर नदी में विलीन हो गई! ग्रामीणों का कहना है कि प्रतिवर्ष कम से कम दो लोग घाघर नदी का शिकार बन जाते हैं और कुछ लोगों को ग्रामीण बचा लेते हैं! बरसात समाप्त होने के बाद भी जो संपर्क मार्ग मौके पर मौजूद है उसे संपर्क मार्ग नहीं कहा जा सकता, किसी के बीमार होने पर उसके परिजन आसानी से अस्पताल नहीं पहुंचा सकते इसी तरह गांव के वह बच्चे जो गांव से बाहर जाकर शिक्षा ग्रहण करना चाहते हैं उनकी भी लगभग 4 महीने की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो जाती है! इस गांव के ग्रामीणों -का कहना है कि कहने को तो हम सबसे आधुनिक 21 सी सदी के सभ्यता में जी रहे हैं लेकिन दिनारी गांव के लोग पूरी तरह आदिम सभ्यता में है इसे इंकार नहीं किया जा सकता! ग्रामीणों का कहना है कि यदि घाघरा नदी पर रपटे के स्थान पर एक ऊंचे पुल का निर्माण करा दिया जाए तो यह गांव जिला मुख्यालय के साथ ही देश के अन्य भागों से जुड़ जाएगा! ग्रामीणों ने कहा कि हमारी ग्राम पंचायत केवटम है और आज तक गांव के तमाम युवा वर्ग के लोग भी अपने प्रतिनिधि को नहीं पहचानते, वर्तमान कार्यकाल समाप्त होने को है लेकिन अभी तक गांव में कभी भी चुनाव जीतने के बाद प्रधान का आगमन नहीं हुआ! इसी तरह इस गांव में ना तो वर्तमान में कभी क्षेत्र पंचायत सदस्य, ब्लॉक प्रमुख और विधायक व सांसद ही दिखाई दिए जब स्थानीय जनप्रतिनिधियों का यह आलम है तो फिर स्पष्ट जाहिर है कि इस गांव के बारे में ना तो यहां के मुख्यमंत्री जानते होंगे ना प्रधानमंत्री!


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