
जीवन में खेल के बिना कुछ भी नहीं–सुधाकर सिंह
तेजस्वी संगठन ट्रस्ट।
कमलेश पाण्डेय
8382048247
कौशाम्बी खेल शिक्षक सुधाकर सिंह भवंस मेहता विद्याश्रम भरवारी ने कहा कि खेल ही जीवन है यह कहावत चरितार्थ है बच्चा पैदा होते ही हाथ-पैर चलाना सीखता है फिर मां ही पहली शिक्षका होती है जो अपने बच्चे को सभी विद्यायें सिखाना शुरु कर देती है जैसे- जैसे बच्चा बड़ा होता है तब खेल गुरु के पास पहुंचता है खेल शिक्षक फिर अलग -अलग खेल के बारे में जानकारी देना शुरु कर्ता है और अंत में वह एक अच्छा खिलाड़ी बन पाता है उन्होंने कहा कि अब बात आती है खेल शिक्षक की तो 90 प्रतिशत स्कूल इस समय ऐसे हैं जहां खेल शिक्षक है ही नहीं -? जहां नहीं हैं खेल शिक्षक वहां का अनुशासन एकदम गर्त में है खेलने से बच्चों में जो तरह -तरह की अनुचित जैसे गुटखा,तम्बाकू,सिगरेट,शराब एवं सबसे बड़ा रोग मोबाइल का जागृति हुआ है यह बड़ा भयानक व्यभिचार जो हमारी नई पीढ़ी को बर्बाद कर रहा है उससे निकल पाना बहुत ही मुश्किल हो गया है इससे हर मां बाप इस समय परेशान है इसका मुख्य कारण बच्चों को खेल से दूर करना -? स्कूल कालेजों में खेल शिक्षकों की नियुक्ती न होना ये सबसे बड़ा कारण है सरकार तो दोषी है ही मां बाप भी दोषी हैं जो अपने बच्चों को खेलने के बजाए मोबाइल फोन देकर गलत राह की तरफ ढकेल रहे हैं सबसे बड़ा दोष मां है जो बच्चे की पहली शिक्षका है जब वह ही मोबाइल देखने में लिप्त है और पहला काम मां कर रही है बच्चे को मोबाइल देकर ,अपना मानना है अगर बच्चे को खाली समय में खेल की तरफ जाने को उत्साहित करें तो बच्चे का शारीरिक विकास के साथ- साथ मानसिक विकास भी होगा अच्छी सोच जागृति होगी