
मिर्जापुर का कालीन उद्योग लड़ रहा अस्तित्व की लड़ाई:लालगंज-हलिया में बंद हुए कारखाने, बुनकर मजदूरी के लिए कर रहे पलायन
तेजस्वी संगठन ट्रस्ट।
चीफ़ ब्यूरो कमलेश पाण्डेय
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मिर्जापुर का प्रसिद्ध कालीन उद्योग आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। लालगंज और हलिया क्षेत्र में एक समय हर घर से कालीन बुनाई की आवाजें आती थीं। रंग-बिरंगे धागों से बनते कालीन की कलाकारी गलियों में दिखाई देती थीतीन दशक पहले तक यह क्षेत्र कालीन निर्माण में अग्रणी था। आज स्थिति बदल चुकी है। कारखाने बंद हैं और मात्र कुछ बुनकर ही इस परंपरा को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। कच्चे माल की अनियमित आपूर्ति और कम दाम मिलने से बुनकर परेशान हैं।
बाजार में मशीन निर्मित सस्ते कालीन की उपलब्धता ने हस्तनिर्मित कालीन की मांग को प्रभावित किया है। निर्यात में गिरावट ने समस्या को और बढ़ा दिया है। युवा पीढ़ी इस व्यवसाय से दूर हो रही है। कम आमदनी के कारण बुनकर अन्य काम करने को मजबूर हैं।लालगंज के बुनकर मटुक प्रसाद के अनुसार, जो करघे कभी परिवारों की आजीविका का मुख्य स्रोत थे, आज वे धूल फांक रहे हैं। कई परिवारों के युवा रोजगार की तलाश में दूसरे शहरों में जा चुके हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘एक जनपद एक उत्पाद’ योजना में मिर्जापुर को शामिल किया है। विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि बुनकरों तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने के प्रयास जारी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए बुनकरों को सीधे बाजार से जोड़ना आवश्यक है।
डिज़ाइन की आधुनिक जानकारी दी जाए और सुलभ ऋण सहायता उपलब्ध कराई जाए।क्षेत्रवासियों की उम्मीदें अब स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों से जुड़ी हैं। धसड़ा गांव के रामशिरोमणि, राम अवतार आदि लोग चाहते हैं कि कालीन उद्योग को फिर से नई पहचान मिले। यह परंपरा और रोज़गार का साधन दोनों जीवित रह सकें।