
सनातन संस्कृति में तुलसी पूजा का सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व
तेजस्वी संगठन ट्रस्ट।
सनातन संस्कृति में तुलसी पूजा का महत्व जाने और समझे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक विश्लेषण:-
सनातन धर्म को मानने वाले लगभग प्रत्येक घर में तुलसी पूजा का अलग ही स्थान है। इस पौधे को देवी तुलसी का सांसारिक रूप माना जाता है जो भगवान कृष्ण की एक समर्पित उपाशिका थी ।शास्त्रों में तुलसी को स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का प्रवेश द्वार माना जाता है ।हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी जी का अवतार माना जाता है इसलिए भगवान विष्णु के चरणों में तुलसी के पत्ते चढ़ाए जाते हैं न केवल चढ़ाए जाते हैं अपितु चरणामृत ,प्रसाद आदि को बिना तुलसी के अपूर्ण माना जाता है।
तुलसी पूजन का प्राचीन काल से हमारी परंपरा में महत्व है जिसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि तुलसी स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है। कई गंभीर बीमारियों को दूर करने, प्रतिरक्षा को मजबूत करने, बैक्टीरिया और वायरस संक्रमणों से लड़ने और फिर विभिन्न प्रकार के बालों और त्वचा विकारों का मुकाबला करने और इलाज करने के लिए इससे बेहतर कुछ भी नहीं है। वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध किया जा चुका है कि तुलसी के अंदर एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरस ,एंटीबायोटिक और कार्सिनोजेनिक गुण होते हैं जिसकी वजह से या बुखार सिर दर्द गले में खराश ,सर्दी ,खांसी फ्लू आदि से राहत दिलाने में मदद करती है।
तुलसी में अनेक औषधीय तत्व जैसे कैल्शियम ,मैग्नीशियम, फास्फोरस ,आयरन और पोटेशियम जैसे तत्वों के साथ विटामिन ए सी और के भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं इसके कारण सामान्य बीमारियों से अलग कुछ घातक बीमारियों जैसे कैंसर, ब्लड प्रेशर ,मधुमेह ,मोटापा आदि के उपचार में प्रयुक्त मेडिसिन में तुलसी का प्रयोग किया जाता है इन्हीं सब तत्व को चरक संहिता में कुछ श्लोक के द्वारा भी अभिव्यक्त किया गया है–
तुलसी कटु कातिक्ता हद्योषणा दाहिपित्तकृत।
दीपना कृष्टकृच्छ् स्त्रपाश्र्व रूककफवातजित।।
अर्थात् तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली हृदय के लिए लाभकारी ,त्वचा रोगों में फायदेमंद ,पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ व आत से संबंधित बीमारियों को भी ठीक करती है।
हिक्काज विश्वास पाश्र्वमूल विनाशिन:।
पितकृतत्कफवातघ्नसुरसा: पूर्ति: गन्धहा।।
सुरसा यानी तुलसी हिचकी, खांसी, जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित वायु खत्म होती है। यह दूर्गंध भी दूर करती है।
त्रिकाल बिनता पुत्र प्रयाश तुलसी यदि।
विशिष्यते कायशुद्धिश्चान्द्रायण शतं बिना।।
तुलसी गंधमादाय यत्र गच्छन्ति: मारुत:।
दिशो दशश्च पूतास्तुर्भूत ग्रामश्चतुर्विध:।।
यदि सुबह, दोपहर और शाम को तुलसी का सेवन किया जाए तो उससे शरीर इतना शुद्ध हो जाता है, जितना अनेक चांद्रायण व्रत के बाद भी नहीं होता। तुलसी की गंध जितनी दूर तक जाती है, वहां तक का वातारण और निवास करने वाले जीव निरोगी और पवित्र हो जाते हैं।
तुलसी तुरवातिक्ता तीक्ष्णोष्णा कटुपाकिनी।
रुक्षा हृद्या लघु: कटुचौहिषिताग्रि वद्र्धिनी।।
जयेद वात कफ श्वासा कारुहिध्मा बमिकृमनीन।
दौरगन्ध्य पार्वरूक कुष्ट विषकृच्छन स्त्रादृग्गद:।।
तुलसी कड़वे और तीखे स्वाद वाली कफ, खांसी, हिचकी, उल्टी, दुर्गंध, हर तरह के दर्द, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाभकारी है। तुलसी को भगवान के प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की भी परंपरा है, ताकि यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही शरीर के अंदर पहुंचे और शरीर में किसी तरह की आंतरिक समस्या पैदा हो रही हो तो उसे खत्म कर दे। शरीर में किसी भी तरह के दूषित तत्व के एकत्र हो जाने पर तुलसी सबसे बेहतरीन दवा के रूप में काम करती है। सबसे बड़ा फायदा ये कि इसे खाने से कोई रिएक्शन नहीं होता है।
उपरोक प्रमाण तुलसी की महत्वत्ता को न केवल बताते है बल्कि तुलसी के पूजन के आध्यात्मिक महत्व के साथ उसका वैज्ञानिक और चिकित्सकीय महत्व भी बताते है।।
जाग्रत सनातन सेना
(अंजनी भारद्वाज अमित मिश्रा कृष्ण मुरारी)