
रमज़ान शुरू होते ही मुसलमानों के घरों में छाई खुशियां
तेजस्वी संगठन ट्रस्ट।
चांद नजर आते ही तराबीह पढ़ने उमड़े नमाज़ी
जहन्नुम के दरवाजे बंद कर खोल दिए जाते हैं जन्नत के दरवाजे
रिज़वान सिद्दीकी
सर्व प्रथम 610 ई से रमज़ान का रोज़ा फर्ज हुआ , इस माह की 27 वीं रात यानी शब -ए -कद्र की रात को कुरान शरीफ जमीन पर उतारी गई, इसी रात में सैयदना हजरते आदमी के जन्म संबंधी बुनियाद भी रखी गई।
बिजनौर । रमज़ान का महीना शुरू होते ही मुसलमानों के घरों में खुशियां छाई जाती हैं। रमज़ान के महीने में अल्लाह के रसूल के फरमान के मुताबिक हर फर्ज इबादतों का सबाब सत्तर गुना अधिक बढ़ा दिया जाता है। साथ ,ही जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं ,और जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं । इसलिए इस माह को बरकतों का महीना भी कहते हैं । रमज़ान इस्लामी कैलेंडर के अनुसार नौंवा माह होता है। रमज़ान का चांद दिखते ही मुसलमान इबादत में लग जाते हैं।
कस्बा झालू के मौहल्ला चौधरीयान स्थित छोटी नाइयों वाली मस्जिद के हाफिज नसीम अहमद अंसारी कहते हैं कि रमज़ान में रोज़ा रख कर रात दिन इबादत करने से बहुत सबाब मिलता है। इस इबादत से अल्लाह राज़ी होता है। सर्व प्रथम 610 ई, से रमज़ान का रोज़ा मुसलमानों पर फर्ज हुआ।
हदीस में आया है कि रमज़ान का महीना आते ही बानी- ए-इसलाम मुहम्मद साहब मक्के के प्रसिद्ध पहाड़ गारे हिरा की एक खोह में जाकर दिन भर भूखे प्यासे रोज़ा रख कर रब की खूब इबादत किया करते थे । इनकी इबादत अल्लाह को इतनी पसंद आई कि उसी समय से मुसलमानों पर रमज़ान का रोज़ा फर्ज कर दिया गया। इस माह की 27 वीं रात यानी शब -ए -कद्र की रात को कुरान शरीफ जमीन पर उतारी गई तथा इसी रात में ही सैयदना हज़रत आदम के जन्म संबंधी बुनियाद भी रखी गई। रमज़ान का रोज़ा हर मर्द औरत व बालिग पर फर्ज है।
हर बुरे काम से परहेज़ करने का नाम रोज़ा ः
सुबह नमाज फजिर का समय शुरू होने से पहले होते ही संध्या कालीन सूर्य डूबने तक खाने, पीने, बीड़ी सिगरेट तंबाकू धूम्रपान सेवन करने के अलावा हर बुरे काम से परहेज़ करने का नाम रोज़ा है। इस संबंध में कहते हैं कि रोज़े की हालत में झूठ बोलना, किसी पर अत्याचार करना, चुगलखोरी, गाली – गलौज, मारपीट, शराब पीना, जुआ व ताश बाज़ी करना, जानबूझकर खाना पीना, धूम्रपान का सेवन करना, गंदे-गंदे चलचित्र को देखना आदि बुरे कामों में शामिल होने से रोज़ा बर्बाद हो जाता है। इससे बचने का हुक्म हमें अल्लाह के रसूल ने दिया है। रोज़ा रख कर प्रतिदिन रोजेदारों को ससमय नमाज़ पढ़ना एवं कुरान शरीफ की तिलावत करना इबादत है। साथ ही इफ्तार के वक्त एक साथ रोज़ा खोलना चाहिए । गरीब निसहाय यतीमों को हर संभव मदद करना चाहिए। रात्रि
में नमाज़ ईशा के फर्ज के बाद एक साथ 20 रक्त तराबीह पढ़ना सुन्नत है। इस माह की फर्ज नमाज का सबाब 70 फर्ज नमाज के बराबर सबाब मिलता है।
रोज़ा नहीं रखने वालों के लिए हुक्म ॎ
जो व्यक्ति इस माह में जान बूझ कर रोज़ा नहीं रखता तथा इसका एहतराम नहीं करता है अल्लाह और उसके रसूल उनसे सख्त नाराज होते हैं। नबी ने फ़रमाया कि रमज़ान जैसे पवित्र महीने का एहतराम न करने वाले व्यक्ति परेशान व बर्बाद हो जाएंगे । बुढापा, लाचारी बीमारी के कारण रोज़ा नहीं रखने पर एक रोज़े के लिए दिन भर के खाने का अनाज ग़रीबों में बांटे। जानबूझकर रोज़ा नहीं रखने वालों को लगातार 60 दिनों तक एक रोज़े के बदले ग़रीबों को खाना खिलाए , या लगातार खुद 60 दिनों तक बतौर जुर्माना रोज़ा रखे , यह अल्लाह का हुक्म है। रोजेदारों को ईद का चांद दिखाई देने से पहले सदका -ए- फितर अदा करना जरूरी है। अन्यथा रोज़ा जमीनों आसमान के बीच लटका रहता है।
तीन अशरे में बांटा गया माह -ए- रमज़ान ः
माह- ए -रमज़ान के पहले दिन से ही पहला अशरा शुरू हो गया। मुफ्ती मोहम्मद हिफ़जान के मुताबिक पूरे रमज़ान को तीन हिस्सों में बांटा गया है।, जो पहला, दूसरा और तीसरा अशरा कहलाता है। एक से दस रमज़ान पहला अशरा कहलाता है, जिसे रहमतों का अशरा कहते हैं। दूसरा अशरा ग्यारह से बीस रमज़ान मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का होता है। और तीसरी अशरा इक्कीस से तीस रमज़ान जहन्नुम की आग से खुद को बचाने के लिए होता है। रमज़ान के शुरूआती दस दिनों में नमाज रोजा रखने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है।
छोटे-छोटे बच्चों में भी दिखा उत्साह रखा रोज़ा
शहर में रमज़ान को लेकर बच्चों में भी उत्साह नजर आ रहा है। रविवार को जनपद बिजनौर में फलो एवं अन्य सामग्रियों से बाजारों में रौनक दिखाई दी, रोजेदारों ने जमकर खरीदारी की छोटे-छोटे बच्चों ने भी आज पहला रोजा रखकर रमज़ान मुबारक की खुशियों का इजहार किया ।